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महंगाईः कैसे कसेगी लगाम?

अप्रैल में जारी हुए नए आंकड़ों ने आधिकारिक तसदीक कर दी कि महंगाई वाकई

मुंह फाड़ रही है। दरअसल जब तक सरकार सामानों की कालाबाजारी नहीं रोकेगी
और वितरण प्रणाली में सुधार नहीं करेगी, तब तक महंगाई पर लगाम नहीं
कसेगी। विनय कुमार मिश्र का आकलन।

अब तक हम सब्जी लाने बाजार जाते थे और महसूस करते थे कि कुछ सब्जियों के
दाम दोगुनी गति से बढ़े हैं। यही हाल दूध और दूसरे सामानों के साथ भी था।
सामान्य बातचीत में यह वाक्य आम तौर से कहा- सुना जाता था कि महंगाई बढ़
गई है। अब यही वाक्य आंकड़ों में बदल गया है। होलसेल इंडेक्स प्राइस के
नए आंकड़े भी यही कहते हैं कि महंगाई खासतौर से खाने-पीने की महंगाई तेज
गति से बढ़ी है। पहले यह आंकड़े हर हफ्ते परेशान करते थे, इसलिए उसे
मासिक आधार पर जारी किया जाने लगा। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
महंगाई उसी गति से बढ़ती रही। सरकार ने रिजर्व बैंक को महंगाई कम करने की
जिम्मेदारी दी तो उसने मौद्रिक नीति की समीक्षा हर तीन माह की जगह 45 दिन
में करनी शुरू कर दी, लेकिन इससे भी महंगाई में कोई कमी नहीं आई। दरअसल
महंगाई पर तब तक नियंत्रण नहीं लगेगा, जब तक कि सरकार कुछ न करे। कोई ठोस
और गंभीर कदम न उठाए। सरकार के विकल्पों को समझने से पहले यह समझते हैं
कि महंगाई बढ़ती क्यों है? महंगाई बढ़ने के दो सबसे बड़े कारण होते हैं।
पहला यह कि बाजार में सामान कम है और उसकी मांग ज्यादा। लेकिन अपने देश
में महंगाई बढ़ने का यह कारण नहीं है। दूसरा कारण होता है कि लोग कानून
से न डरें और सामान की कालाबाजारी करें। भारत में महंगाई इसी कारण से बढ़
रही है।

पिछले दिनों हुई घटनाओं से यह साबित भी होता है। देश में हाल फिलहाल में
प्याज के दाम दो बार बेतहाशा बढ़े। जब सरकार जाने की नौबत आई तो वह जागी।
इसके बाद देश भर में छापेमारी हुई। व्यापारियों के यहां से प्याज की
जमाखोरी मिली, साथ ही करोड़ों रुपये के व्यापार को छिपाने की जानकारी भी।
इस छापेमारी का असर यह हुआ कि प्याज के दाम दो दिन में ही गिर गए।

इससे साफ जाहिर है कि सरकार अगर महंगाई रोकने के लिए कमर कस ले तो यह
कठिन काम नहीं है। लेकिन अभी तक ऐसा होता दिखा नहीं है। कुछ साल पहले देश
में प्रभावी सार्वजनिक वितरण प्रणाली थी। इसके माध्यम से लोगों को सस्ता
गेहूं, चावल, मिट्टी का तेल सहित अन्य जरूरी चीजें मिलती थीं। आज ऐसी
दुकानें खोजना कठिन है। ऐसा नहीं है कि लोग यहां से सामान लेना नहीं
चाहते थे। लोग दुकानों पर जाते तो उन्हें बार-बार लौटाया जाता। ज्यादा
कहने पर कुछ सामान दिया जाता, बाकी बाद में देने की बात की जाती। इन
दुकानों पर सामान खरीदना खासा मुश्किल काम है, यह सरकार को अच्छी तरह पता
है, लेकिन उसने आज तक कुछ नहीं किया।

यह दुकानें किन-किन लोगों के पास हैं और वह किन-किन लोगों के करीबी हैं,
यह बताने वाली बात नहीं है। दरअसल दुकानों के आवंटन से ही शुरू होती है
धांधली और फिर लोगों के हक मारने तक पहुंच जाती है। अगर सरकार अपनी इस
वितरण प्रणाली को सही कर ले तो बाजार में महंगाई बढ़ाने वालों पर शिकंजा
कसा जा सकता है। इन दुकानों से तय भाव पर जरूरी चीजों की आपूर्ति आसानी
से की जा सकती है। लेकिन फिर यह होगा कि बाजार में जो लोग ऊंची कमाई करने
के लिए बैठे हैं, उनको बेजा कमाई का मौका नहीं मिलेगा। जब सरकारी दुकानों
से तय भाव पर सामान मिलेगा तो कोई बिना वजह क्यों महंगा सामान बाजार से
खरीदेगा।

यह कोई बड़ा कठिन काम भी नहीं है। इसके लिए संसद में बिल भी लाने की
जरूरत नहीं है, लेकिन करेगा कोई नहीं। क्योंकि बाजार और सरकार के रिश्ते
खराब हो जाएंगे। जब व्यापारी अनाप-शनाप कमाएंगे नहीं तो आगे किसी को
देंगे क्या! जब लेनदेन रुक जाएगा तो ऐसी सरकार में रहने का फायदा ही
क्या।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकारी अधिकारी खुल कर फैसलें करें,
लेकिन यह किसी ने नहीं कहा कि जो फैसले हो चुके हैं, उन पर पूरे मन से
अमल करें। खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर आगे बढ़ी सरकार व्यापारियों के
आगे वेबस हो गई। बीमा से लेकर विमानन क्षेत्र में एफडीआई के मामले में
सरकार कुछ नहीं कर पाई। विदेशों में सौदे कर के देश में अरबों रुपये का
कर बचाने वालों के खिलाफ कोई कड़ा कानून भी लागू नहीं कर पाई। सबसे ताजा
उदाहरण है कि किंगफिशर और एयर इंडिया की हड़ताल के बाद बाकी एयर लाइंस
दोगुना किराया वसूल रही हैं, लेकिन सरकार इस स्थिति पर कोई नियंत्रण नहीं
कर पा रही है। इसलिए महंगाई पर अब रोना बंद किया जाना चाहिए और इससे
निपटने के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। क्योंकि महंगाई से निपटने के
लिए किसी भी नए कानून की जरूरत नहीं है, न ही अधिकारियों को कोई पॉलिसी
डिसीजन लेना है। ऐसे में बहानेबाजी की कोई जगह नहीं है। व्यापारियों और
कारोबारियों में यह डर होना ही चाहिए कि वह गलत करेंगे तो कार्रवाई होगी।